जीएच कादिर
पलायन को लेकर कैराना काफी सुर्खियों में रहा है और सियासी लोग इसे 2017 के यूपी विधान सभा तक जिन्दा रखना चाहते हैं ।कैराना के पलायन की वास्तविक सचाई क्या है , यह सरलता से कह पाना आसान नहीं है.....लेकिन , कैराना से इतर "पलायन और भेदभाव " एक कड़ुवा सच है । यह पलायन किसी जाति- धर्म विशेष से सम्बन्ध नहीं है जो सदियों से यूपी, क्या ? पूरे देश के गांव में देखने को मिल रही है । हालिया पड़ताल से यह देखने को मिला है कि उत्तर प्रदेश के अधिकांश गांवों में जिस समुदाय या जाति बहुसंख्यक में है उस गांव में कम संख्या में बसने वाली जातियाँ कई मामलों में अपने ऊपर अन्याय को न चाहते हुए भी सहती हैं । अगर बात केवल यूपी की ही करें तो प्रदेश में जातियों का दम्भ हिन्दू और मुसलमान दोनों में बराबर है । यदि इसी जातीय समीकरण के अनुसार किसी गांव में किसी भी मुसलमान जातियों में बहुसंख्यक किसी एक जाति के हैं तो उनकी दबंगई और भेदभाव अपनी ही मुस्लिम जाति के अल्पसंख्यक लोगों के साथ करते हैं । ठीक इसी तरह अगर हिन्दुओं की आबादी किसी गांव मे ज्यादा है तो उसमें किसी एक जाति की संख्या ज्यादा है तो वहाँ हिन्दू समुदाय की ही किसी जाति के साथ भेदभाव जगजाहिर है । यहाँ यह भी सोलह आने कटु सत्य है कि अगर किसी गांव में हिन्दू और मुसलमान की कथित अगड़ी जाति के लोगों की संख्या ज्यादा है तो सामाजिक भेदभाव की स्थिति और भी विकट है, इस बात की प्रमाणिकता किसी भी निष्पक्ष एएजेंसी से लगवाया जा सकता है । पलायन का सबसे बड़ा कारण जातीय एवे सामाजिक भेदभाव ही होता है, केवल एक भयानक उदाहरण लगभग 90% गांवों में देखा जा सकता है कि आज भी एक विशेष जाति के लोगों के गांव की विशेष दिशा मे बसने को मजबूर किया जाता है । यह मुसलिम बाहुल्य गांव में तो दिखता ही है, जबकि हिन्दू बाहुल्य गांव में इस बसावट का सख्ती से पालन किया जाता है या करवाया जाता है । यह तो एक बानगी है । यह किसी एक सरकार की नाकामी नहीं है कि लोग पलायन कर रहे हैं बल्कि यह यह एक घटिया सामाजिक ताना बाना की उपज है जो भेदभाव से शुरु होकर पलायन पर रुकता है अत: इस बात को समुदाय विशेष से न जोड़कर "क्षेत्र विशेष की आबादी की दूषित मानसिकता" से जोड़कर देखा जाना चाहिए , जिसको दूर करने की सख्त ज़रूरत है अन्यथा यह अन्यायपूर्ण पलायन यूंही चलता रहेगा ।